सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष मौजूद मुद्दे

  1. परिचय

मौजूदा वित्त-वर्ष में सोलहवें वित्त आयोग का गठन किया जाएगा। आयोग को वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण सामने आने वाली चुनौतियों के प्रभाव का आकलन करना होगा, जो विश्व स्तर पर जारी युद्ध, कोविड की वजह से राजकोषीय उतार-चढ़ाव तथा विभिन्न प्रकार की वृहत-आर्थिक अस्थिरताओं के कारण उत्पन्न हुईं हैं। केंद्र एवं राज्यों के आर्थिक विकास, तथा राजस्व और व्यय का सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिए आयोग को यह निर्धारित करना होगा कि, अनिश्चितताओं का प्रभाव संघ और राज्यों के बीच राजकोषीय व्यवस्था पर पड़ा है। हालाँकि इस बार की आर्थिक अनिश्चितता का स्तर अभूतपूर्व है, अतीत में तेरहवें तथा पंद्रहवें वित्त आयोगों को भी इसी तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ा था।

  1. विश्व स्तर पर वृहत-आर्थिक अनिश्चितता और नीतियों पर विचार-मंथन

वैश्विक आर्थिक संकट के कारण वृहत-आर्थिक अनिश्चितता तथा केंद्र एवं राज्यों की राजकोषीय स्थिति पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में 13वें वित्त आयोग (2009) द्वारा की गई टिप्पणी के साथ इस लेख की शुरुआत करते हैं:

““बीते सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था को बाहरी परिस्थितियों की वजह से कई बार उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा है। सबसे पहले तो, उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में तेजी से हुई बढ़ोतरी के कारण ईंधन तथा उर्वरक पर सब्सिडी की लागत में वृद्धि हुई, जिसका सार्वजनिक वित्त पर काफी असर पड़ा है। दूसरी बात यह कि, वैश्विक वित्तीय संकट के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर धीमी हो गई है, जिसने राजस्व आधार को प्रभावित किया है, साथ ही मंदी के खिलाफ वृद्धिशील सार्वजनिक व्यय की आवश्यकता को बढ़ाया है।”

15वें वित्त-आयोग (2020) के अवलोकन के अनुसार, महामारी ने केंद्र और राज्य स्तर पर राजकोषीय प्रबंधन को जटिल बना दिया था। वित्त-आयोग ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि, ऐसी परिस्थितियों में राजकोषीय प्रोत्साहन आवश्यक हो गया है। परंतु महामारी के आर्थिक दुष्परिणामों का मुकाबला करने के उद्देश्य से मजबूत विस्तारक राजकोषीय नीति तैयार करनी होगी, जिसके लिए राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के समर्पित मार्ग के साथ-साथ समान रूप से भरोसेमंद निकास योजना की ज़रूरत होगी। (पैरा 3.16)

15वें वित्त-आयोग ने कोविड महामारी के परिप्रेक्ष्य में बढ़ते राजकोषीय असंतुलन को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार के लिए राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के वैकल्पिक रास्ते विकसित किए। 15वें वित्त-आयोग ने राजस्व की अनिश्चितता, राजकोषीय उतार-चढ़ाव तथा कोविड के कारण बढ़ते व्यय की जरूरत को देखते हुए केंद्र सरकार के ऋण-घाटे के अनुमान के लिए तीन परिदृश्यों पर विचार किया। कर राजस्व में नुकसान की भरपाई के लिए, आयोग की ओर से निर्धारित अवधि के पहले दो वर्षों में राज्यों को बिना शर्त अतिरिक्त उधार लेने की अनुमति प्रदान करने का भी प्रस्ताव दिया गया। (पैरा 1.41)

इससे पहले, वैश्विक वित्तीय संकट के मद्देनजर, वर्ष 2008-09 में केंद्र सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को भी अस्थायी रूप से कम करके जीएसडीपी का 3.5%, तथा वर्ष 2009-10 में जीएसडीपी का 4% किया गया था। 13वें वित्त आयोग द्वारा भी राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की रणनीति तैयार की गई थी, जिसमें वर्ष 2010-11 से वर्ष 2014-15 की अवधि के लिए राजस्व घाटा, राजकोषीय घाटा और ऋण-जीडीपी अनुपात को लक्षित किया गया था। 13वें वित्त आयोग द्वारा राजस्व घाटे, राजकोषीय घाटे और ऋण को लक्षित करते हुए राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए जो सुझाव दिए गए थे, उनका अनुपालन करने के लिए ज्यादातर राज्यों ने वर्ष 2010-11 और वर्ष 2011-12 के बीच अपने एफआरबीएम अधिनियमों में संशोधन किया। 13वें वित्त आयोग ने संघ और राज्यों, दोनों को वर्ष 2014-15 तक राजस्व घाटे को समाप्त करने की सिफारिश की।

महामारी को देखते हुए, 15वें वित्त आयोग ने यह विचार प्रस्तुत किया कि वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 के दौरान जीडीपी की वृद्धि में अनिश्चितता रहेगी। आयोग ने 2022-23 के बाद से निर्धारित अवधि के शेष चार वर्षों के दौरान आर्थिक गतिविधियों में विस्तार का अनुमान लगाया। इसी के अनुरूप, आयोग ने हर वर्ष के लिए अलग-अलग विकास पथ को अपनाया। 13वें वित्त आयोग ने भी राजकोषीय मूल्यांकन के उद्देश्य से जीडीपी के विकास का पृथक मार्ग अपनाया।

 

 

III. राजकोषीय आकलन एवं पूर्वानुमान

इस खंड में, पिछले वित्त आयोगों द्वारा अपनाई गई विधियों, विश्व स्तर पर उभर रही वृहत-आर्थिक अनिश्चितताओं तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा महामारी से निपटने के लिए किए गए राजकोषीय उपायों की समीक्षा के आधार पर, हम उन सभी प्रमुख मुद्दों को उजागर करते हैं जो सोलहवें वित्त के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं:

(a) आधार वर्ष का सामान्यीकरण  

संघ और राज्यों, दोनों के राजस्व तथा व्यय आवश्यकताओं के अनुमान एवं मूल्यांकन हेतु आधार वर्ष के चयन को उतार-चढ़ाव और राजकोषीय प्रतिक्रियाओं से सुरक्षित करके सामान्यीकृत किया जाना चाहिए। आधार वर्ष के अनुमान में विश्व स्तर पर वृहत-आर्थिक अनिश्चितताओं, कोविड के कारण राजकोषीय उतार-चढ़ाव तथा विश्व स्तर पर उभरते वृहत-आर्थिक परिदृश्य और राज्यों एवं केंद्र के राजकोषीय संतुलन पर उनके प्रभाव को ध्यान में रखना होगा। 16वें वित्त-आयोग के संदर्भ में यह उचित ही है कि, शर्तों में अनुमान के लिए आधार वर्ष निर्दिष्ट करने की आवश्यकता नहीं है। संघ, राज्यों के साथ चर्चा करने, तथा वित्त-वर्ष 2023-24, 2024-25 (आरई) और 2025-26 (बीई) के लिए सामने आने वाले नए डेटा सहित इससे संबंधित दूसरे कारकों पर विचार करने के बाद, उचित आधार वर्ष के चयन का दायित्व 16वें वित्त-आयोग पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

(b) नीति में बदलाव और डेटा की तुलनीयता

कोविड से निपटने के लिए नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव किये गये। राज्यों को ऋण देने के कार्यक्रम को फिर से शुरू करने सहित राजकोषीय संचालन में परिवर्तन ने घाटे और व्यय के आंकड़ों को गैर-तुलनीय बना दिया है। समय के साथ राज्यों के बीच एक तुलनीय डेटा सेट विकसित करने की आवश्यकता है। राजस्व के आंकड़ों को भी जीएसटी मुआवजे और कोविड राजकोषीय प्रोत्साहन के लिए समायोजित करने की आवश्यकता है।

 

(c) विकास दर के अनुमान

संघ और राज्यों, दोनों के लिए संसाधनों की उपलब्धता का पूर्वानुमान लगाने के लिए विकास का यथार्थवादी आकलन करना बेहद महत्वपूर्ण है। आयोग को वर्ष 2026-27 से वर्ष 2030-31 की अवधि में विकास का अनुमान लगाने के लिए एक तंत्र विकसित करना होगा, जिसमें आर्थिक अनिश्चितता, विकास और राजकोषीय विवेक को ध्यान में रखना होगा।

  1. राजकोषीय स्थिरता की रूपरेखा

सार्वजनिक ऋण में तेजी से हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए, सतत राजकोषीय सुधार के लिए राजकोषीय पुनर्गठन एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है। विकास और वृहत-आर्थिक स्थिरता के लिए राजकोषीय समायोजन के मार्ग को फिर से संतुलित करना, राजस्व घाटा कम करने की एक सशर्त व्यवस्था बनाना और राजकोषीय स्वायत्तता को सीमित किए बिना राजकोषीय नियम पर पुनर्विचार करना बेहद महत्वपूर्ण होगा। कोविड महामारी के परिणामस्वरूप केंद्र और राज्यों दोनों को महत्वपूर्ण वित्तीय झटका लगा है, जिसने कोविड के बाद घाटे और ऋण की स्थिति को एक “नया सामान्य” बना दिया है। राजकोषीय पुनर्गठन की स्थिति में इस नए-सामान्य को ध्यान में रखना होगा, तथा संघ और राज्यों के लिए एक-समान रूप से विश्वसनीय तथा लागू करने योग्य राजकोषीय पुनर्गठन योजना बनानी होगी।

  1. कल्याणकारी योजनाएँ बनाम निःशुल्क सुविधाएँ

हाल के दिनों में, देश में राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न कल्याणकारी उपायों को ‘निःशुल्क सुविधा’ के तौर पर देखा गया है और इस पर काफी चर्चा हुई है। यह धारणा बनाने का प्रयास किया गया है कि, राज्य राजकोष के धन को फिजूलखर्च कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई इससे अलग है। जब बहुस्तरीय सरकारी प्रणाली में राजकोषीय हस्तक्षेप की बात आती है तो मुद्दों का सही संतुलन होना बेहद जरूरी है। विभिन्न प्रकार की बाह्यता के लिए स्थानांतरण और सब्सिडी के सही मिश्रण की भी आवश्यकता है। इसको देखते हुए, वित्त आयोग को यह सुझाव देने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए कि, पुनर्वितरणात्मक राजकोषीय हस्तक्षेप के संदर्भ में राज्यों को क्या करना चाहिए। यह तब और भी ज्यादा अनावश्यक हो जाती हैं, जब सभी राज्यों में राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून हैं और वे राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए कदम उठा रहे हैं।

  1. बजट से इतर ऋण और राजकोषीय उत्तरदायित्व

इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि, बजट से इतर ऋण का एक हिस्सा राज्यों के सकल राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के अंतर्गत आ गया है। बजट से इतर ऋण, दरअसल राज्य सरकारों की ऋण आवश्यकता का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे सार्वजनिक क्षेत्र की ऋण आवश्यकताओं का हिस्सा हैं। केंद्र सरकार पर भी यही तर्क लागू होता है। इस प्रकार, घाटे के लक्ष्य में उचित वृद्धि के बिना बजट और बजट से इतर ऋण का विलय, राजकोषीय गुंजाइश को कम करने की क्षमता रखता है। संघ और राज्यों के बजट से इतर संचालन के प्रति एक-समान दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए और टीओआर को राजकोषीय प्रबंधन के इस पहलू पर गौर करना चाहिए।

VII. केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं का पुनर्गठन

पिछले वित्त आयोगों ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं का पुनर्गठन करने और उन्हें युक्तिसंगत बनाने के लिए सुझाव प्रस्तुत किए थे। इस संबंध में भी उल्लेखनीय प्रगति भी हुई है। पहले केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं की संख्या 200 से ज्यादा थी जो अब घटकर 28 हो गई है। हालाँकि, सीएसएस के प्रबंधन की जटिलता के तीन महत्वपूर्ण आयाम हैं:

  1. सीएसएस को बंद करने का राज्य के वित्त पर राजकोषीय प्रभाव, विशेष रूप से जब कई कारणों से, नियोजित कर्मी राज्य सरकार के वेतन पर बने रहते हैं।
  2. ज्यादातर सीएसएस का वित्तपोषण संघ और राज्यों द्वारा साथ मिलकर किया जाता है, इसलिए डिजाइन, लचीलेपन और कार्यान्वयन में राज्यों की भूमिका थोड़ी अधिक होनी चाहिए और सोलहवें वित्त आयोग को इस संबंध में एक रूपरेखा का सुझाव देने के लिए कहा जा सकता है।
  3. योजनाओं के डिज़ाइन और कार्यान्वयन में केंद्र और राज्यों के एक-समान अधिकारों के साथ-साथ सीएसएस के प्रबंधन के संबंध में एक व्यय परिषद गठित करने पर विचार किया जा सकता है।

संदर्भ

चक्रवर्ती, पिनाकी और मनीष गुप्ता (2021): “15वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं का विश्लेषण: स्थिरता, निरंतरता और परिवर्तन”, एनआईपीएफपी कार्य-पत्र