सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष मुद्दे

सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष मुद्दे

लेखक: जी.आर. रेड्डी

सोलहवें वित्त आयोग (FC-XVI) का गठन 31 दिसंबर 2023 को किया गया, जिसके अध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया हैं|

इस बार आयोग के संदर्भ की शर्तें (ToR) संविधान के अनुच्छेद 280 में अनिवार्य शर्तों तक सीमित हैं और इसीलिए पिछले आयोगों की तुलना में बहुत छोटी हैं। ये इस प्रकार हैं: (i) केंद्र के कर राजस्व का कितना हिस्सा राज्यों को हस्तांतरित किया जाना चाहिए (ऊर्ध्वाधर साझाकरण), (ii) केंद्रीय करों के विभाजनीय हिस्से में प्रत्येक राज्य का हिस्सा निर्धारित करना (क्षैतिज वितरण), (iii) सहायता की ज़रूरत वाले राज्यों को अनुदान की सिफारिश करना, और (iv) राज्य में पंचायतों और नगर पालिकाओं के संसाधनों की पूर्ति के लिए राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के उपायों की सिफारिश करना।

हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 280(2)(c) के तहत, वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाने के लिए उपयुक्त किसी भी अन्य मामले को राष्ट्रपति द्वारा आयोग को भेजा जा सकता है, परंतु इस बार ToR में शामिल किया गया एकमात्र अतिरिक्त मामला आपदा प्रबंधन पहल के वित्तपोषण पर वर्तमान व्यवस्था की समीक्षा करना और उचित सिफारिशें करना है|

ये ToR पिछले आयोगों, विशेषकर पंद्रहवें वित्त आयोग (FC-XV) के बिल्कुल विपरीत हैं, जो अत्यधिक विवादास्पद हो गया था| FC-XV के विवादास्पद ToR में निम्नलिखित बातें शामिल थीं, (i) क्या राज्यों को राजस्व घाटा अनुदान प्रदान किया जाना चाहिए, (ii) क्या रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के वित्तपोषण के लिए एक अलग तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए, और, अगर ऐसा है तो  इस तरह की व्यवस्था को कैसे क्रियान्वित किया जा सकता है, और (iii) कम-से-कम नौ क्षेत्रों में मापने योग्य प्रदर्शन संकेतक का प्रस्ताव देना, जिनमें भारत सरकार की प्रमुख योजनाओं को हासिल करने में हुई प्रगति भी शामिल है।

वित्त आयोग अपनी सिफारिशें करते समय जिन बातों को ध्यान में रखेगा, उन्हें FC-XVI के ToR में सूचीबद्ध नहीं किया गया है, जो अतीत में अपनाये गए तरीके से बिल्कुल अलग है| नवंबर 2023 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा ToR को मंजूरी दिए जाने के बाद एक संवाददाता सम्मलेन में, केंद्रीय वित्त सचिव, श्री टी. वी. सोमनाथन ने स्पष्ट किया कि भले ही ये ToR हाल के आयोगों की तुलना में छोटे हैं, लेकिन वे सर्व-समावेशी हैं, जो हितधारकों को अधिक छूट प्रदान करते हैं ताकि उनके आदानों (इनपुट्स) को ध्यान में रखा जा सके| उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्यों के साथ विचार-विमर्श के बाद ToR को तैयार किया गया है|

 

वित्त आयोग की नियुक्ति एक महत्वपूर्ण घटना है और इसकी सिफारिशों का न केवल संघ और राज्यों के वित्त पर, बल्कि देश में राजकोषीय संघवाद के भविष्य को आकार देने पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ता है|

हालिया वर्षों में भारतीय राजकोषीय संघवाद में दूरगामी महत्व के कई परिवर्तन हुए हैं| किसी भी विचार या बहुत अधिक अतिरिक्त मामलों से बंधे बिना, इस आयोग के पास हालिया घटनाक्रमों के प्रभाव तथा संघ एवं राज्यों के बीच बढ़ती विश्वास की कमी को ध्यान में रखने और राजकोषीय संघवाद को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों की मूल भावना को संरक्षित करने के उपायों की सिफारिश करने में पिछले आयोगों की तुलना में अधिक गुंजाइश है| FC-XVI सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने और देश की विकास क्षमता को साकार करने के लिए, राज्यों को प्रगति में समान भागीदार बनाने के उद्देश्य को साकार करने के लिए एक कार्य-योजना का सुझाव दे सकता है|

एफसी-XVI के समक्ष मुद्दे

  1. कर हस्तांतरण – उपकर और अधिभार की उपयुक्तता बनाए रखना

वे कौन से मुद्दे हैं, जिन पर नये वित्त आयोग को ध्यान देना चाहिए? सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात कर हस्तांतरण की उपयुक्तता को बनाए रखना है| हालाँकि केंद्रीय करों के विभाजनीय हिस्से में राज्यों की वर्तमान हिस्सेदारी 41 प्रतिशत है, जिसे बढ़ाने की गुंजाइश केंद्र की प्रतिबद्ध देनदारियों के कारण सीमित है, लेकिन इसे कम करना एक प्रमुख मुद्दा होना चाहिए|

सकल कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में कर हस्तांतरण 2011-12 में केवल 28.2 प्रतिशत और 2020-21 में 29.4 प्रतिशत था, जबकि इस अवधि के लिए क्रमशः 32 और 41 प्रतिशत की हिस्सेदारी की अनुशंसा की गई थी| केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी वर्तमान में केवल 31 प्रतिशत है, जबकि अनुशंसित हिस्सेदारी 41 प्रतिशत है| केंद्र द्वारा उपकर और अधिभार लगाने के अंधाधुंध उपायों के कारण अनुशंसित हस्तांतरण और वास्तविक हस्तांतरण के बीच का अंतर 2011-12 में 4 प्रतिशत से भी कम से बढ़कर 2020-21 में 10 प्रतिशत हो गया है|

संविधान के तहत, उपकर और अधिभार की आय राज्यों के साथ साझा नहीं की जा सकती है| केंद्र के सकल कर राजस्व में उपकर और अधिभार की हिस्सेदारी 2011-12 में 10.4 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 20.1 प्रतिशत हो गई, जो इस उम्मीद को झुठलाती है कि जीएसटी आने के बाद अधिकांश उपकर इसमें समाहित हो जाएंगे| इसके परिणामस्वरूप, केंद्र के सकल कर राजस्व में कर हस्तांतरण का हिस्सा अनुशंसित कर हस्तांतरण से बहुत कम रहा है| संविधान के तहत, केंद्र का कर राजस्व, संग्रहण की लागत को घटाकर, राज्यों के साथ साझा किया जा सकता है| संग्रहण की लागत कर राजस्व के 1 से 2 प्रतिशत से अधिक नहीं है। संग्रहण की लागत में छूट के बाद भी, वास्तविक कर हस्तांतरण अनुशंसित हिस्से से काफी कम हो जाता है|  इस प्रकार, चौदहवें वित्त आयोग (FC-XIV) द्वारा अनुशंसित उच्च कर हस्तांतरण को केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के वित्तपोषण के स्रोत के रूप में उपकर और अधिभार लगाने के उच्चतर उपायों को अपनाकर बेअसर कर दिया गया है|

एक के बाद एक आयोगों ने इस बात पर विचार किया है कि, उपकर और अधिभार एक विशिष्ट आवश्यकता को पूरा करने के लिए और एक निश्चित अवधि के लिए संयमित रूप से लगाए जाने चाहिए| हालाँकि वित्त आयोगों द्वारा कई बार यह सुझाव दिया गया है कि इन्हें एक निश्चित स्तर पर सीमित किया जाए, इसके बावजूद उनकी उगाही पर केंद्र की निर्भरता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ रही है| FC-XV द्वारा प्रायोजित एक अध्ययन में विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने पाया कि, उपकर और अधिभार भारत की कर व्यवस्था की लगभग स्थायी विशेषता बन गए हैं| उपकर और अधिभार लगाए जाने के उद्देश्य व्यापक और बिना किसी निश्चित सीमा के होते हैं| एक चिंताजनक बात यह है कि, उपकर उन उद्देश्यों के लिए लगाया जा रहा है जो राज्य सूची में शामिल हैं| इसके अलावा, उपकर से प्राप्त आय के उपयोग में कोई पारदर्शिता नहीं है| सोलहवें आयोग को संघ-केंद्र संबंधों में इस समस्या को स्थायी आधार पर दूर करने की आवश्यकता है|

  1. केंद्र प्रायोजित योजनाएँ राज्यों की स्वायत्तता को खत्म कर रही हैं

केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) के प्रसार का मुद्दा भी उपकर और अधिभार की समस्या से संबंधित है, जिनमें से अधिकांश को केंद्र द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित किया जाता हैं| इनमें से कई योजनाएँ राज्य सूची में शामिल विषयों से संबंधित हैं| हालाँकि भारत सरकार द्वारा नियुक्त कई समितियों ने CSS को राष्ट्रीय महत्व के क्षेत्रों तक सीमित रखने की सिफारिश की है, लेकिन अब तक केवल उनकी संख्या में किसी भी प्रभावी कमी के बिना उन्हें मोटे तौर पर 28 प्रमुख विषयों के तहत समूहीकृत किया गया है| बिबेक देबरॉय ने कहा कि, “स्पष्ट रूप से, 28 का आंकड़ा भ्रामक है| अगर ठीक से गणना की जाए तो, CSSs की संख्या आंशिक रूप से इस बात पर निर्भर करती है कि कोई CSS को कैसे परिभाषित करता है| लेकिन यह संख्या 200 के करीब होगी|” (“केंद्र प्रायोजित योजनाओं का पुनर्गठन राज्यों के परामर्श के बिना नहीं किया जा सकता है”| फाइनेंशियल एक्सप्रेस, 12 सितंबर, 2019)

केंद्र सरकार द्वारा हर पांच साल के अंतराल पर चल रहे CSS की समीक्षा करने और उन्हें वित्त आयोगों के कार्यकाल की निर्धारित अवधि के साथ समाप्त करने का निर्णय लिया गया था| मौजूदा CSS बास्केट FC-XIV की सिफारिशों के साथ 31 मार्च, 2020 तक समाप्त हो जानी चाहिए थी| लेकिन केंद्र की ओर से अब तक ऐसी कोई समीक्षा नहीं की गयी है| इसके अलावा, नीति आयोग द्वारा गठित मुख्यमंत्रियों की उप-समिति, जिसने 2015 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, ने अन्य बातों के साथ-साथ राष्ट्रीय महत्व के क्षेत्रों में योजनाओं की संख्या कम करने और CSS की “वन-साइज़-फिट्स-ऑल” की समस्या को सुलझाने के लिए वैकल्पिक योजनाओं को पेश करने की अनुशंसा की| हालाँकि इन्हें केंद्र द्वारा स्वीकार कर लिया गया था, लेकिन आठ साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद इन सिफारिशों पर अब तक कोई प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हुआ है|

कर हस्तांतरण को छोड़कर, CSS के तहत अनुदान लगातार वित्त आयोग के  हस्तांतरण से अधिक रहा है| उदाहरण के लिए, 2015-16 में वित्त आयोग के अनुदान की राशि 84,579 करोड़ रुपये थी, जबकि राज्यों को CSS हस्तांतरण दोगुने से भी अधिक, यानी 1,75,736 करोड़ रुपये था| 2022-23 में, 3,46,992 करोड़ रुपये का CSS हस्तांतरण वित्त आयोग के अनुदान के 100 प्रतिशत से भी अधिक हो गया| सभी समस्याओं के एकल समाधान वाले डिज़ाइन पर तैयार किए गए ढेर सारे CSS की मौजूदगी और कम वितरित आवंटन ने उनके लाभों को काफी हद तक कम कर दिया है|

. संविधान के तहत, वित्त आयोग की परिकल्पना राज्यों को अनुदान देने वाले प्रमुख माध्यम के रूप में की गई है| सीएसएस के अनुदान संविधान के अनुच्छेद 282 के तहत दिए जाते हैं| नौवें वित्त आयोग के अनुरोध पर प्रख्यात न्यायविद् एन.ए पालखीवाला ने राय दी थी कि, ”अनुच्छेद 282 का उद्देश्य संघ को ऐसे अनुदान देने में सक्षम बनाना नहीं है, जो अनुच्छेद 275 के अंतर्गत आते हैं| अनुच्छेद 282 केवल एक अवशिष्ट प्रावधान का प्रतीक है जो संघ या राज्य को किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए कोई भी अनुदान देने में सक्षम बनाता है, भले ही यह सवाल हो कि क्या उद्देश्य वह है जिसके लिए अनुदानकर्ता के पास विधायी क्षमता है|”

CSS की बढ़ती संख्या से राज्यों की ओर से अपनी स्वायत्तता खत्म होने के संबंध में की गई वास्तविक शिकायतों को देखते हुए, इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि FC-XVI सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के हित में इस मुद्दे को संबोधित करे| उपकर, अधिभार और CSS से संबंधित मुद्दों को हल करने से राज्य के विषयों पर केंद्र के खर्च में स्वतः ही कमी आ जाएगी|  FC -XIV ने इसका अवलोकन किया कि, 2002-05 और 2005-11 के बीच राज्य सूची के विषयों पर केंद्र का राजस्व व्यय औसतन 14 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत और समवर्ती सूची के विषयों पर औसतन 13 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत हो गया है|

  1. मुफ़्त उपहार

एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा, जिस पर FC-XVI को ध्यान देने की आवश्यकता है, वह राज्यों और संघ द्वारा बढ़ती ‘मुफ़्त उपहार’ संस्कृति से संबंधित है, साथ ही कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन प्रणाली पर वापस लौटना भी देश की वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा है| केंद्र और बड़ी संख्या में राज्यों द्वारा 2026 में होने वाले वेतन संशोधन से भी वित्त पर दबाव पड़ेगा| सभी सब्सिडी मुफ़्त में दिया जाने वाला उपहार नही है| वित्त आयोग आम सहमति पर पहुंचने के लिए सभी हितधारकों के साथ परामर्श कर सकता है और इस प्रकार के मुफ़्त उपहार को प्रतिबंधित करने के लिए एक व्यवस्था तैयार कर सकता है, जो सब्सिडी की श्रेणी में नहीं आते हैं तथा जनकल्याण को बढ़ावा देने वाले नहीं हैं| आयोग इस उद्देश्य के लिए प्रोत्साहन/निराशाजनक पैकेज लागू करने पर भी विचार कर सकता है|

  1. राजकोषीय स्थिति को सुदृढ़ बनाने का रोडमैप

2018 में FRBM अधिनियम में संशोधन के अनुसार, यह अनिवार्य था कि केंद्र 31 मार्च 2024 तक अपने कर्ज को कम करने के लिए उचित उपायों को अपनाएगा, जो सकल घरेलू उत्पाद के 40 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, साथ ही केंद्र के लिए 31 मार्च, 2021 तक अपने राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत तक सीमित करने के लिए उचित कदम उठाना भी अनिवार्य था| अल्पावधि में इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की संभावना नहीं है| कोविड की वजह से उत्पन्न आर्थिक मंदी स्पष्ट तौर पर आंशिक रूप से इस चूक का कारण है|  हालाँकि राज्य समग्र स्तर पर राजकोषीय घाटे और राजस्व घाटे के लक्ष्यों का पालन कर रहे हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों के बीच इसमें काफी अंतर है| इसके अलावा, कोविड के प्रभाव और केंद्र द्वारा ऋण की अतिरिक्त सीमा को अनुमति दिए जाने के बाद, राज्यों की राजकोषीय स्थिति में कुछ गिरावट देखी गई है| बजट से बाहर लिए गए ऋण को लेखा-बही के दायरे में लाने तथा राज्य के बजटीय संसाधनों से प्राप्त किए गए ऋण को उसे राज्य द्वारा बजट से बाहर लिए गए ऋण के रूप में स्वीकार करने के लिए केंद्र द्वारा हाल ही में की गई पहल सही दिशा में हैं| राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के तंत्र को और मजबूत करना होगा| वित्त आयोग ऋण स्तर, राजकोषीय और राजस्व घाटे को कम करने के लिए बेहतर रास्ते सुझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है| FC-XII ने राजस्व घाटे में कमी से जुड़ी ऋण राहत की सिफारिश की और राजकोषीय जिम्मेदारी कानून बनाने वाले राज्यों पर ऋण राहत को सशर्त बना दिया| FC-XVI पर राजकोषीय समेकन को मजबूत करने, प्रोत्साहन के अनुरूप राजकोषीय विवेक स्थापित करने की संभावना तलाशने तथा बच निकलने वाली धाराओं को और अधिक सख़्त बनाने की एक बड़ी जिम्मेदारी है|

  1. समानता और दक्षता को संतुलित करना

किसी भी वित्त आयोग के सामने एक बड़ी समस्या समानता और दक्षता को संतुलित करना है| वित्त आयोग के हस्तांतरण के ज्यादा से ज्यादा प्रगतिशील होने के बावजूद, राज्यों में आय असमानताएं बढ़ी हैं| इस संदर्भ में, भारत के उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों के बीच अंतर का मुद्दा सामने आया है| कर हस्तांतरण में दक्षिणी राज्यों की हिस्सेदारी, दूसरे वित्त आयोग की अवधि (1957-62) के 23.3 प्रतिशत से घटकर नौवें आयोग (19990-95) की अवधि में 22.1 प्रतिशत और इसके बाद FC-XV के कार्यकाल की अवधि (2021-26) में 15.8 प्रतिशत हो गई| संघीय ढांचे वाले सभी देशों में अमीर राज्यों से गरीब राज्यों में संसाधनों का पुनर्वितरण सभी संघों में बेहद सामान्य बात है, लेकिन सवाल यह उठता है कि अमीर राज्यों को हतोत्साहित किए बिना इस प्रकार का तर्कहीन तीव्र पुनर्वितरण किस हद तक वांछनीय है|

बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में यह भावना है कि वित्त आयोगों के आवंटन में उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है क्योंकि उनकी प्रति व्यक्ति आय पिछड़े राज्यों की तुलना में अधिक है| अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों को प्रोत्साहित करते समय पिछड़े राज्यों की बाधाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है| लेकिन उच्च हस्तांतरण से इन राज्यों में आत्मसंतुष्टि की भावना पैदा नहीं होनी चाहिए| फिर 2026 में होने वाले परिसीमन का वक़्त भी नजदीक आ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप दक्षिणी राज्यों की संसदीय सीटों में कमी आएगी| बेहतर प्रदर्शन करनेवाले जिन राज्यों की    जनसंख्या में मध्यम वृद्धि हुई है, उनके लिए यह दोहरी मार है|

उच्च प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों में भी बड़े अंतर्राज्यीय असमानता और पिछड़े हिस्से हैं| इन पर ध्यान देने की जरूरत है| यह वांछनीय है कि कर हस्तांतरण मानदंड में कोई भी बदलाव क्रमिक हो, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों के धन के प्रवाह में कोई बड़ी कटौती न हो| इसलिए FC-XVI, आयकर और कॉर्पोरेट करों पर 5 प्रतिशत के विशेष अधिभार की सिफारिश करने पर विचार कर सकता है और उत्पत्ति के आधार पर राज्यों को विशेष रूप से आय आवंटित कर सकता है| (संविधान के तहत, आयकर संघ सूची में है और राज्य अपने अधिकार क्षेत्र में होने वाली आय पर अधिभार नहीं लगा सकते हैं)| इस तरह के अधिभार लगाने से राज्यों के बीच बुनियादी ढांचे के विकास और निजी निवेश को आकर्षित करने में स्वस्थ प्रतिस्पर्धी संघवाद का निर्माण होगा  और इस प्रकार कर योग्य आय के आधार में सुधार होगा| किसी भी वित्त आयोग के समक्ष बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों और पिछड़े राज्यों के हितों को संतुलित करना एक बड़ी चुनौती होती है|

  1. पिछड़े राज्यों की उपयोग करने की क्षमता में कमी को संबोधित करना

पिछड़े राज्यों में हस्तांतरण में समानता पर ध्यान केंद्रित करते समय, कई वजहों से इन राज्यों की अवशोषण क्षमता की कमी पर अब तक ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है| वित्त आयोग और योजना आयोग (मार्च 2015 में नीति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने तक) के हस्तांतरण बेहद प्रगतिशील होने के बावजूद, राज्यों में आय असमानताएं बढ़ रही हैं| इसका मुख्य कारण पिछड़े राज्यों में उपलब्ध संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने की क्षमता की कमी है। बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे कई पिछड़े राज्य अपने राजस्व खातों में अधिशेष बनाए हुए हैं और उनका राजकोषीय घाटा भी स्वीकार्य स्तर से कम पाया गया है| इससे पता चलता है कि, अधिकांश पिछड़े राज्य केंद्र द्वारा उन्हें आवंटित बाजार उधार का पूरा उपयोग नहीं कर रहे हैं|

इन बाधाओं को ध्यान में रखते हुए, यह जरूरी है कि नीति आयोग को उन्हें संभालने और उनकी उपयोग करने की क्षमता में सुधार करने की भूमिका सौंपी जाए| इस प्रयोजन के लिए, केंद्र पिछड़े राज्यों के विकास के लिए एक विशेष कोष बना सकता है और उपयुक्त समझी जाने वाली परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए इसे नीति आयोग के अधीन कर सकता है| इससे नीति आयोग को मजबूती मिलेगी, जो अब तक केवल थिंक टैंक बनकर रह गया है|

  1. केंद्र द्वारा प्रमुख खनिजों पर रॉयल्टी और खनिज ब्लॉकों की नीलामी

खदान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (MMDR), 1957 के तहत, केंद्र सरकार को किसी भी प्रमुख खनिज के संबंध में तीन साल की अवधि के दौरान एक से अधिक बार देय रॉयल्टी की दर को बढ़ाने या कम करने का अधिकार है| रॉयल्टी की दरें आखिरी बार सितंबर 2014 में संशोधित की गई थीं| रॉयल्टी राज्यों द्वारा जमा की जाती है और अपने पास रखी जाती है| केंद्र ने कोयला क्षेत्र में सुधार करने, अर्थव्यवस्था के लिए मूल्य अनलॉक करने और बिजली क्षेत्र के लिए कोयले की कमी को दूर करने के आधार पर 2015 में MMDR अधिनियम में संशोधन के माध्यम से खदानों की नीलामी शुरू की थी| खनिज के कर-निर्धारण के अधिकारों को संविधान में राज्य सूची की मद 50 के तहत शामिल किया गया है| हालाँकि, यह संघ द्वारा खदानों और खनिज विकास के विनियमन पर निर्भर करता है, जो सार्वजनिक हित में संसद द्वारा पारित किसी भी कानून के अधीन है|

संसद में एक प्रश्न के उत्तर में, केंद्रीय कोयला, खान और संसदीय मामलों के मंत्री ने संकेत दिया कि अब तक 330 खनिज ब्लॉकों की नीलामी की जा चुकी है और इनमें से कई का संचालन अभी बाकी है| उन्होंने तर्क दिया कि राज्यों को मिलने वाली रॉयल्टी 2017-18 और 2021-22 के बीच तीन गुना से अधिक हो गई है और इसलिए, प्रमुख खनिजों पर रॉयल्टी दरों को संशोधित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है| 2014 के बाद से रॉयल्टी दरों में संशोधन न होने से खनिज भंडार वाले ऐसे राज्य वंचित हो गए हैं, जो ज्यादातर राजस्व के प्रचुर स्रोत से पिछड़े हुए हैं| 2021-22 में प्रमुख खनिजों पर कुल रॉयल्टी 38,840.54 करोड़ रुपये थी| इसमें से तीन राज्यों, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा की हिस्सेदारी 76.2 प्रतिशत थी| यहां मुद्दा यह है कि राष्ट्रहित में पिछड़े राज्यों को राजस्व से वंचित क्यों किया जाना चाहिए| FC-XVI 2014 से सूचीकरण के साथ रॉयल्टी दरों में तत्काल संशोधन की सिफारिश करने पर विचार कर सकता है| इस संदर्भ में यह गौर करना प्रासंगिक हो सकता है कि, केंद्र सरकार ने MMDR  संशोधन अधिनियम, 2023 के माध्यम से MMDR  अधिनियम, 1957 में संशोधन किया है, जिसके तहत 24 महत्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों को MMDR अधिनियम, 1957 की अनुसूची- I के भाग D में शामिल किया गया है, जिन्हें देश के लिए महत्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों के रूप में पहचाना गया है| इसके अलावा, संशोधित अधिनियम ने केंद्र सरकार को इन खनिजों ब्लॉकों की नीलामी करने का भी अधिकार दे दिया है| भारत सरकार ने महत्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों के 20 ब्लॉकों के लिए 29 नवंबर, 2023 को इन खनिजों की नीलामी की पहली किश्त शुरू की है|

  1. स्थानीय निकायों को अनुदान

संविधान के तहत, राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर पंचायतों और नगर पालिकाओं के संसाधनों की पूर्ति के लिए राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों की सिफारिश करना भी वित्त आयोग का एक कार्य है| क्रमिक वित्त आयोगों की सलाह के बावजूद, अधिकांश राज्य समयबद्ध तरीके से राज्य वित्त आयोगों के गठन के प्रति उदासीन रहे हैं, जिससे उनके द्वारा समाविष्ट की जाने वाली अवधि केंद्रीय वित्त आयोगों के साथ ही समाप्त हो जाती है| FC-XV ने सिफारिश की थी कि, यदि राज्य वित्त आयोगों का गठन करने और उनकी सिफारिशों पर की गई कार्रवाई रिपोर्ट को 31 मार्च, 2024 तक राज्य विधानसभाओं में रखने में विफल रहते हैं, तो केंद्रीय वित्त आयोग स्थानीय निकायों को अनुदान समाप्त कर सकते हैं| राज्यों को इसके अनुरूप बनाने की आवश्यकता है|

विकेंद्रीकरण से वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए, हस्तांतरण और स्वयं के राजस्व सृजन, दोनों के माध्यम से उनके राजस्व को बढ़ाना आवश्यक है| स्थानांतरणों को उत्साहपूर्ण बनाने के लिए FC-XIII द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया यहां प्रासंगिक हो सकती है| आयोग ने सिफारिश की थी कि अनुच्छेद 275 के तहत इस हिस्से को अनुदान सहायता में परिवर्तित करने के बाद, स्थानीय निकायों को करों के विभाजनीय हिस्से का एक प्रतिशत (राज्यों के हिस्से के अलावा) हस्तांतरित किया जाना चाहिए| इसने सिफारिश की कि, पिछले वर्ष (t-1) के लिए विभाजनीय हिस्से की मात्रा का उपयोग किसी विशेष वर्ष (t) के लिए स्थानीय निकायों की अनुदान पात्रता की गणना के लिए आधार के रूप में किया जाए|

 

  1. स्थानीय निकायों द्वारा स्वयं के संसाधन जुटाना

FC-XVI यह सिफारिश करने पर विचार कर सकता है कि, अनुच्छेद 276 के तहत स्थानीय निकाय द्वारा पेशा कर लगाने की वर्तमान सीमा 2,500 रुपये को संशोधित किया जा सकता है या स्थानीय निकायों को अधिक छूट प्रदान करने के लिए हटाया भी जा सकता है| आयोग राज्य वित्त आयोगों को स्थानीय निकायों द्वारा अतिरिक्त संसाधन जुटाने के स्रोतों की पहचान करने की सलाह देने पर भी विचार कर सकता है| उदाहरण के लिए, उच्चतम न्यायालय ने राजकोट नगर निगम द्वारा दायर सिविल अपील संख्या 9458-63/2003 का निपटारा करते हुए आदेश दिया कि, भारत संघ और उसके विभाग किसी भी संपत्ति कर का भुगतान नहीं करेंगे, लेकिन उन्हें सेवा शुल्क का भुगतान करना होगा, जिसकी गणना पूर्ण या आंशिक या बिना सेवाओं के उपयोग के आधार पर 75 प्रतिशत, 50 प्रतिशत या 33.33 प्रतिशत की दर से की जाती है। उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है कि इस उद्देश्य के लिए, भारत संघ के संबंधित विभाग द्वारा संबंधित स्थानीय निकाय के साथ समझौते किए जाएंगे| बहुत से स्थानीय निकाय इसका पालन नहीं कर रहे हैं|

 

  1. सशर्त बनाम बिना शर्त अनुदान

 

FC-XVI द्वारा विचार करने लायक एक और मुद्दा यह है कि, क्या अनुदान मुख्य रूप से शर्तों के अधीन होना चाहिए या उन्मुक्त होना चाहिए| पिछले कुछ समय से, वित्त आयोग प्रदर्शन से जुड़े अनुदानों की सिफारिश कर रहे हैं| अनुभव से पता चलता है कि वित्त आयोगों द्वारा निर्धारित शर्तों के अलावा केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा लगाई गई कड़ी शर्तों के कारण सशर्त अनुदान जारी करना काफी खराब रहा है| उदाहरण के लिए, FC-XV द्वारा अनुशंसित स्वच्छता के लिए अनुदान प्राप्त करने के लिए, प्रत्येक राज्य सरकार और संबंधित शहरी प्राधिकरण को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करना होगा, जिसमें जल आपूर्ति, जल संरक्षण और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तथा स्वच्छ भारत मिशन के परिणामों को बनाए रखने के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आधारभूत स्तर और वार्षिक लक्ष्य शामिल होंगे| कई मामलों में, विभिन्न शर्तों में से केवल एक को पूरा न करने पर संपूर्ण अनुदान से इनकार किया जा सकता है| इसलिए, FC-XVI सशर्त अनुदान के मुद्दे पर विचार कर सकता है और केवल उन्हीं को लागू कर सकता है जिन्हें स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप उपयोग करने के लिए पर्याप्त लचीलेपन के साथ लागू करना और निगरानी करना आसान है|

  1. राज्यों की बढ़ती व्यय प्रतिबद्धताएँ

केंद्र ने सतत विकास लक्ष्यों और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्रों में बहुपक्षीय एजेंसियों के साथ समझौते किए हैं| इन समझौतों में राज्यों की ओर से लागत शामिल होती है| इन प्रतिबद्धताओं को वित्त आयोग के मूल्यांकन में शामिल करने की आवश्यकता है|

  1. केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों की भूमि का मुद्रीकरण

. राज्य सरकारों ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना के लिए केंद्र सरकार को निःशुल्क या बहुत कम कीमत पर जमीनें सौंपी थीं| इनमें से कई ने अपना परिचालन समाप्त कर दिया है और उनके स्वामित्व वाली भूमि का मुद्रीकरण केंद्र द्वारा किया जा रहा है तथा इससे होने वाली आमदनी राज्यों के साथ साझा नहीं की जा रही है| यह पूरी तरह से अनुचित है, क्योंकि ज़मीनें एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए आवंटित की गई थीं| FC-XVI भूमि के मुद्रीकरण से होने वाली आय को राज्यों के साथ साझा करने के मुद्दे पर विचार कर सकता है|

  1. राजस्व सुधार

राज्यों के अपने कर राजस्व और सकल घरेलू उत्पाद से अनुपात 6 से 7 प्रतिशत के बीच स्थिर बना हुआ है, साथ ही गैर-कर राजस्व और जीएसडीपी का अनुपात भी 1 प्रतिशत से अधिक नहीं है| हालिया अनुमानों से संकेत मिलता है कि, राज्यों के अपने कर राजस्व की उछाल पिछले दशक के अंत में 0.72 से आधे से भी अधिक घटकर पिछले तीन वर्षों में 0.32 हो गई है (इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली संपादकीय, ‘द सिक्सटीन्थ फाइनेंस कमीशन’, 23 दिसंबर, 2023)| हालाँकि केंद्र का कर- सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 2021-22 में सुधरकर 11.7 प्रतिशत हो गया, लेकिन यह अभी भी 2007-08 में प्राप्त 11.89 प्रतिशत के अनुपात से थोड़ा कम है| हालाँकि, राज्यों द्वारा कर राजस्व में वृद्धि की गुंजाइश है, लेकिन जीएसटी में वैट जैसे कई राज्य करों को शामिल करने से यह सीमित हो गया है| इस प्रकार, अपने कर-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में सुधार करना केंद्र की प्रमुख जिम्मेदारी है| केंद्र के राजस्व के मानक अनुमान में, कर आधार का विस्तार करने और संसाधन जुटाने की गुंजाइश शामिल होनी चाहिए| यह महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य अपने राजस्व व्यय के 42 प्रतिशत और अपने संपूर्ण पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण के लिए केंद्र पर निर्भर हैं|

  1. व्यय सुधार और इसे युक्तिसंगत बनाना

केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर व्यय को युक्तिसंगत बनाने की काफी गुंजाइश है| केंद्र और राज्य, दोनों की ओर से चल रही योजनाओं की समीक्षा का अभाव है| कई वर्ष पहले शुरू की गई योजनाएं बिना किसी समीक्षा के जारी रखी जा रही हैं| पहले भी बताया जा चुका है कि, ऐसा लगता है कि केंद्र हर पांच साल के अंतराल पर CSSs की समीक्षा करने और उन्हें वित्त आयोगों के कार्यकाल की अवधि के साथ सहवर्ती बनाने की प्रतिबद्धता से पीछे हट गया है| इसी तरह, राज्यों की कई चल रही योजनाओं में समापन का कोई प्रावधान नहीं है| इसके परिणामस्वरूप, बजट में ऐसी योजनाओं के लिए अभी भी प्रावधान किए जा रहे हैं, जबकि उनमें से ज्यादातर योजनाएँ पूरी तरह से अनावश्यक हो चुकी हैं| कुछ राज्यों में 800 से अधिक योजनाएँ हैं, जिनमें से कुछ 40 साल से भी पहले शुरू की गई थीं|

इस तरह की प्रथाओं के परिणामस्वरूप दुर्लभ संसाधनों का बहुत कम प्रसार हुआ है जिससे निम्नस्तरीय परिणाम प्राप्त हुए हैं|

इसी प्रकार, केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों पर ऐसे कार्यालय हैं जो आज पूरी तरह से अनुपयोगी हो गए हैं| उदाहरण के लिए, कई राज्यों में स्टेट गजेटियर का कार्यालय है, जो ब्रिटिश शासन की विरासत है| ऐसे कार्यालय सरकार के प्रत्येक विभाग में पाए जा सकते हैं| इसके विकल्प के तौर पर कुछ कार्यालयों का विलय किया जा सकता है| एक और बड़ी समस्या संसाधनों के कम प्रसार की है| पूंजीगत कार्यों की परियोजना पूरी होने की अवधि को कम करने के लिए, कई राज्यों के FRBM अधिनियम में यह प्रावधान है कि, एक वित्तीय वर्ष में किसी भी विभाग द्वारा स्पिलओवर कार्यों सहित स्वीकृत कार्यों का कुल मूल्य संबंधित खाते के उस वर्ष के बजट अनुमान के तीन गुना से अधिक नहीं होगा| इसके अलावा, स्पिलओवर कार्यों सहित उस वर्ष निष्पादित किए जाने वाले कार्यों की कुल लागत उस वर्ष के संबंधित लेखा शीर्ष के बजट अनुमान से डेढ़ गुना से अधिक नहीं होगी| इन शर्तों का दण्डमुक्ति के साथ उल्लंघन किया जाता है| इसके परिणामस्वरूप, कई नई परियोजनाएं शुरू की जा रही हैं, जिससे चल रही परियोजनाओं के लिए धन की कमी हो रही है, जिसके चलते समय और लागत में वृद्धि हो रही है|  सार्वजनिक व्यय से इष्टतम परिणाम सुनिश्चित करने के लिए FC-XVI इन मुद्दों पर विचार कर सकता है| FC-XIV द्वारा अनुशंसित किया गया है, केंद्र और राज्यों दोनों द्वारा चरणों में संचय-आधारित बजटिंग में परिवर्तन को दोहराया जाना चाहिए|

 

  1. वित्त आयोग की सिफ़ारिशों को पुरस्कार और पैकेज के रूप में माना जाएगा

राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण से संबंधित सिफारिशों को एक पुरस्कार के रूप में मानने की स्थापित परंपरा से हटते हुए, केंद्र ने क्षेत्र-विशिष्ट और राज्य-विशिष्ट अनुदानों से संबंधित FC-XV की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया है| यह संविधान के तहत गठित आयोग को पूरी तरह से खोखला करने वाला अनोखा कदम है| FC-XVI यह स्पष्ट करने पर विचार कर सकता है कि, उनकी सिफारिशें एक पैकेज और एक पुरस्कार के स्वरूप की हैं| पहले भी बताया जा चुका है कि, पिछले आयोगों की सिफारिशों, विशेष रूप से कर हस्तांतरण में राज्यों की हिस्सेदारी के संबंध में की गई सिफारिशों की समीक्षा करना वांछनीय नहीं हो सकता है| राज्यों को उच्च हस्तांतरण का उद्देश्य केवल हस्तांतरणों की संरचना को बंधनमुक्त हस्तांतरण के पक्ष में बदलना था|

बहुत सारे अतिरिक्त विषयों और विचारों से बाधित हुए बिना, FC-XVI को एक चुनौतीपूर्ण कार्य करना है।

(जनवरी 29, 2024)

(मैं डॉ. वाई.वी. रेड्डी, डॉ. महेंद्र देव और डॉ. राममनोहर रेड्डी को उनकी टिप्पणियों के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ|)